जगप्रभा

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शनिवार, 27 नवंबर 2010

“सुदामा और कृष्ण”- आज भी...

दीवाली में घर- यानि बरहरवा- गया हुआ था
कोलकाता से कैलाश (पटवारी) का फोन आता है कि (बरहरवा में ही) कुष्माकर (तिवारी) अपना घर बना रहा है, एक बार जाकर देख लेना कि सब सही तो है (वास्तुशास्त्र के हिसाब से)।
अगले रोज कुष्माकर भी बाजार में अपने बच्चों को पटाखे दिलवाते हुए मिल गया। उसने भी यही कहा।
कैलाश और कुष्माकर दोनों यूँ तो मेरे छोटे भाई की मित्र मण्डली के हैं, मगर मेरे भी दोस्त हैं।
दीवाली के बाद वाले रोज कुष्माकर मोटर साइकिल पर आया। मैं बगल के रूपश्री स्टूडियो में बैठा था।
दोनों घर देखने गये। शानदार दोमंजिला मकान बनकर तैयार था- प्लास्तर का काम चल रहा था। घर वास्तु के हिसाब से ही बना था।
चलते समय मैंने कहा- तुम इसमें काफी सुखी रहोगे और खूब तरक्की करोगे।  
***
कुष्माकर भाजपा कार्यकर्ता है। आय का कोई जरिया नहीं है। समाज का, और अपने दोस्तों का प्रियपात्र है, इसलिए गुजारा चल रहा है। हालाँकि उसका ‘क्रीज’ वाला पहनावा देखकर कोई यह नहीं कह सकता कि उसकी आर्थिक स्थिति खराब है।
कुछ समय पहले वह बीस सूत्री कार्यक्रम का अध्यक्ष था; अभी भी सांसद प्रतिनिधि है, मगर कभी उसने ‘ऊपरी कमाई’ करने की कोशिश नहीं की। राजनीति से जुड़े होने के कारण जरूरतमन्दों की मदद ही करता है। उसका स्वभाव ही ऐसा नहीं है कि वह ‘दो-नम्बरी’ कमाई में संलग्न हो सके।
अब तक टालियों की छत वाली झोपड़ीनुमा घर में वह रह रहा था।
इसी होली में तो हमलोग जब ‘जुगाड़’ में घूम रहे थे, उसने अपने टाली वाले घर के सामने ‘जुगाड़’ रुकवाया था और हमलोगों को घर से लाकर पूआ, दहीबड़ा खिलाया था।
अचानक वह इतना विशाल और शानदार दोमंजिला मकान कैसे बनवा रहा है- मैंने जानना नहीं चाहा।
***  
रात मैंने कैलाश को फोन लगाया और बताया कि कुष्माकर का मकान एकदम सही बन रहा है।
तब वह राज खोलता है कि कुष्माकर को मकान बनवाकर वही दे रहा है। मकान शुरु करने से पहले पाकुड़ के वास्तुशास्त्री से नक्शा बनवाने की सलाह भी उसी ने दी थी।
वह एक और राज खोलता है कि पन्द्रह साल पहले कुष्माकर को पार्टी बदलने के लिए लाखों रूपये का ऑफर मिला था, मगर उसने पार्टी नहीं बदली थी।
***
मैं नहीं जानता, आप इस घटनाक्रम को क्या कहेंगे।
मगर मेरे लिए तो सुदामा और कृष्ण की कहानी हमारे बरहरवा में फिर से- इस कलियुग में- दुहरायी जा रही है।
***  
(मैं नहीं जानता, मुझे यह लिखना चाहिए था या नहीं. कभी मौका मिला तो दोनों से पूछ लूँगा.) 

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