जगप्रभा

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शनिवार, 5 नवंबर 2011

छठ_बरहरवा_2011


इस साल 1 और 2 नवम्बर को छठ पड़ा

पिछले वर्षों की तरह इस बार भी 'न्यू स्टार क्लब' वालों द्वारा 'मुन्शी पोखर' पर आयोजित छठ की व्यवस्था तथा सजावट सबसे अच्छी रही

झिकटिया के 'झाल दीघी' तालाब की सजावट तथा व्यवस्था की भी प्रशंसा (पिछले साल से ही) हो रही है

रेलवे के विशाल तालाब 'कल पोखर' पर होने वाले छठ की व्यवस्था एक जैसी ही रहती है- सजावट पर कम ही ध्यान दिया जाता है यहाँ का छठ सबसे पुराना है (प्रसंगवश, इस तालाब के एक हिस्से को भरा जा चुका है, अब कुछ और हिस्से को भरने की तैयारी है सुना है, रेलवे इसे भरकर चौथा प्लेटफार्म तथा कुछ पटरियाँ बिछायेगा अब बताईये, कि तालाब तथा रेलवे के विकास, दोनों में से किसी एक को चुनना कितना मुश्किल है!)

इस साल की सबसे उल्लेखनीय बात यह रही हमारे मुहल्ले के एक तालाब- दुर्भाग्य से, जिसका नाम मरल (मृत) पोखर है- में छठ की शुरुआत हुई। इसका श्रेय उत्तम को जाता है। उसने तय कर लिया था कि चाहे उसे अकेले ही करना पड़े और चाहे दो इमेर्जेन्सी लाईट रखकर करना पड़े, मगर वह छठ करेगा तो यहीं! जैसा कि हम जानते हैं- इस तरह के फैसले लेने के बाद रास्ते अपने-आप निकलने लगते हैं! छठ से तीन-चार रोज पहले प्रदीप भैया तथा मेरा छोटा भाई बबलू उसकी मदद को आगे आये और देखते-ही-देखते सारा इन्तजाम हो गया। प्रदीप भैया सात-आठ व्रतियों को ले आये, दिलीप भैया ने जेनरेटर दिया, किसी ने केले के पेड़ दिये, किसी ने चाय-शर्बत गछा, किसी ने साउण्ड सिस्टम के पैसे दिये, किसी ने शटरिंग के पैसे दिये (घाट पर तख्तों के शटरिंग कर उन्हें सुविधाजनक बनाने का रिवाज यहाँ है), काली काकू तथा कुछ अन्य लोगों ने चन्दे के रुप में पैसे दिये, फागू ने बच्चों की फौज से सजावट का इन्तजाम करवाया, प्रदीप (यह दूसरा प्रदीप है) ने अपना होटल बन्द कर सारी कुर्सियाँ भेजवा दीं, हाटपाड़ा का एक युवक (नाम मैं भूल रहा हूँ) तो तीन दिनों तक यहाँ डटा रहा। लम्बू पण्डित जी ने यहाँ के वातावरण से प्रभावित होकर स्वेच्छा से अर्घ्य की दोनों बेला में आकर मंत्रोच्चार किया मुहल्ले के मुसलमान बच्चों तथा किशोरों का योगदान भी देखने लायक था! जैसा कि फागू ने मुझे बताया कि मोनू भैया, मुहल्ले के किशोरों तथा बच्चों का उत्साह देखकर वे दिन याद आ गये, जब आपलोग सरस्वती पूजा करते थे और हम बच्चों की फौज सहायता के लिए हर वक्त मुस्तैद रहा करती थी। उन दिनों न हम मजदूर रखते थे और न ही डेकोरेटर। सारा काम हमलोग स्वयं किया करते थे!
खैर, यह तो तय हो गया कि अगले साल से यहाँ का छठ प्रसिद्ध हो जायेगा। हमारे मुहल्ले के सभी व्रतधारी (जिन्होंने इस साल ‘मुन्शी पोखर’ में जगह बुक करा ली थी) अगले साल से यहीं छठ करेंगे। उत्तम का कहना है कि वह यहाँ बिल्कुल धार्मिक भाव से आयोजन करवायेगा- प्राकृतिक माहौल में और हाँ, इस तालाब का नाम अब से गंगा पोखर होगा!
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मेरे पास डिजिटल कैमरा न होने के कारण मैं बरहरवा के छठ की खूबसूरती आपके सामने नहीं ला सकता... बस मोबाइल से खींचे हुए कुछ तस्वीर प्रस्तुत कर रहा हूँ, जो कि उस खूबसूरती को बयान करने में सक्षम नहीं हैं।

ये हैं झालदीघी की तस्वीरें- रंजीत मुझे छठ का अर्घ्य शुरु होने से पहले वहाँ ले गया था


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..और ये रहीं प्रसिद्ध मुन्शी पोखर की कुछ तस्वीरें. (काश कि सारी तस्वीरें मैं प्रस्तुत कर पाता...) - 












   

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