जगप्रभा

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रविवार, 3 नवंबर 2013

88. "छोटी" का "बड़ा" "घरकुण्डा"!



      आज सुबह छोटी घरकुण्डा सजाने में व्यस्त थी। "घरौंदा" शब्द को बिगाड़कर यहाँ "घरकुण्डा" कहा जाता है। सोचा, जरा देख आया जाय, कैसा घरौंदा बना है। छत पर जाकर देखा- एक बड़ा-सा कमरा बना दिया गया है, जिसमें तीन-चार बच्चे आराम से बैठ सकते हैं! पूछा, घरौंदा तो छोटा होता है, इतना बड़ा किसने बनाया? छोटी ने बताया- भैया लोगों ने बना दिया। यानि अभिमन्यु, शिवम और (पड़ोस के) निकेश ने मिलकर।
       नीचे आकर अभिमन्यु से पूछा, इतना बड़ा घरौंदा क्यों? उसका जवाब था- मुझे क्या पता, घरौंदा क्यों बनता है? मैंने सोचा, पटाखा फोड़ने के लिए बनता है, इसलिए बड़ा-सा बना दिया- ताकि पटाखा फोड़ने में आसानी हो।
       उसे बताया कि लड़कियाँ छोटा-सा घरौंदा बनाकर उसे खील-खिलौनों से भरती हैं, ताकि उसे जो ससुराल मिले, वह भी धन-धान्य से भरा-पूरा रहे। 

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