जगप्रभा

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रविवार, 22 मार्च 2015

133. "प्रश्नपत्र नीति"


       क्या प्रश्नपत्र बनाते वक्त ऐसा नहीं किया जा सकता कि-
*30 प्रतिशत सवाल आसान पूछे जायें, ताकि औसत दर्जे से कम वाले या कमजोर विद्यार्थी भी इन्हें हल कर सकें;
*30 प्रतिशत सवाल औसत दर्जे के पूछे जायें- औसत दर्जे के विद्यार्थी जिन्हें आसानी से हल कर सकें;
*30 प्रतिशत सवाल कठिन पूछे जायें- तेज विद्यार्थियों के लिए, और
*10 प्रतिशत सवाल बहुत कठिन पूछे जायें, जिन्हें केवल मेधावी विद्यार्थी ही हल कर सकें?
       ऐसा न करके अगर सारे-के-सारे सवाल बहुत कठिन पूछे जायें, तो क्या होगा? मेरे ख्याल से, इसके एक नहीं, बहुत सारे दुष्परिणाम होंगे- और वे हमें नजर आते भी हैं। उस विवरण पर मैं नहीं जाना चाहता। मैं सिर्फ इतना कहना चाहता हूँ कि देश को किसानों-मजदूरों, खिलाड़ियों-कलाकारों, मिस्त्रियों-कारीगरों, किरानियों-व्यापारियों से लेकर वैज्ञानिकों-विद्वानों तक सबकी जरुरत होती है।
सारी आबादी को विद्वान-वैज्ञानिक बनाने की कोशिश मूर्खता है!
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उपर्युक्त आलेख को मैंने परसों लिखा था, मगर जल्दी ही हटाना पड़ा। क्योंकि मुझे लगा- इससे यह सन्देश जा सकता है कि मैं बिहार में मैट्रिक परीक्षाओं में चल रही चोरी/नकल को उचित ठहराने की कोशिश कर रहा हूँ- कि चूँकि प्रश्नपत्र कठिन है, इसलिए चोरी/नकल हो रही है। ऐसी बात नहीं है। मैं चोरी या नकल के सख्त खिलाफ हूँ। मैंने खुद इनका सहारा लेने के बारे में कभी सपने में भी नहीं सोचा था/है।
मेरा कहना है कि समाज का हर विद्यार्थी "मेधावी" नहीं हो सकता और औसत तथा औसत से कम मेधा रखने वाले, या कमजोर विद्यार्थियों को भी स्कूल/कॉलेज जाने, परीक्षा पास करने का अधिकार है। कोई पढ़ाई में कमजोर है, तो क्या हुआ, हो सकता है कि उसे अभिनय बढ़िया करना आता हो, या वह फुटबॉल अच्छा खेलता हो, या फिर, कोई और गुण हो इसमें। उसे बार-बार फेल किया जायेगा, तो वह अवसाद में चला जायेगा, अपने सहपाठियों से बिछुड़ जायेगा, या फिर पढ़ाई ही छोड़ देगा। इसके विपरीत अगर वह मामूली अंकों से पास होता रहेगा, तो उसका आत्मविश्वास बढ़ेगा, अपने सहपाठियों (चाहे वे कितने भी मेधावी छात्र हों) की संगत में रहेगा और सबसे बड़ी बात, उसे उस क्षेत्र में आगे बढ़ने का अवसर मिलेगा, जिसमें वह दक्षता रखता है- जैसे, वह स्कूल/कॉलेज की ओर से खेलते हुए फुटबॉल के क्षेत्र में नाम कमा सकता है!
खैर, कल अखबार में CBSE की एक खबर पढ़ने के बाद मैंने फैसला किया कि नहीं, इस आलेख को फिर से पोस्ट करना है
...और आज अखबार में देखा- रवीश जी ने एक लेख लिखा है, अगर मिला, तो उसका लिंक भी यहाँ दूँगा।
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अभिमन्यु पढ़ाई में औसत या औसत से ऊपर है। पिछले साल NDA की परीक्षा की तैयारियों के समय उसने बताया था कि गणित के जो प्रश्न (11वीं-12वीं स्तर के नाम पर) इसमें पूछे जाते हैं, वे IIT के स्तर के हैं। मुझे आश्चर्य हुआ था और मेरे मुँह से निकला था- सेनाओं को अधिकारी चाहिए या परमाणु वैज्ञानिक?
इस बार अभिमन्यु ने झारखण्ड बोर्ड से इण्टर (I.Sc.) की परीक्षा दी। पता चला, रसायनशास्त्र और गणित का जो प्रश्नपत्र था, वह विद्यार्थियों की पढ़ाई जाँचने के लिए नहीं बनाया गया था, बल्कि प्रश्नपत्र तैयार करने वालों ने अपनी "प्रतिभा", अपना "ज्ञान" बघारने की नीयत से उसे तैयार किया था!
विद्यार्थियों के डरे हुए चेहरों की कल्पना करके ये प्रश्नपत्र सेट करने वाले विद्वान कुछ वैसा ही आनन्द प्राप्त करते होंगे, जैसा कि पुराने जमाने में कुछ कबीलों के सरदार अपने दुश्मनों को शेर के पिंजड़े में फिंकवा कर आनन्द प्राप्त करते थे...

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